जुलाई के आखिर तक दिल्ली में नहीं होंगे साढ़े पांच लाख केस : अध्यक्ष डॉ. महेश वर्मा

मुआयना...

कोरोना वायरस को लेकर एक बड़ी राहत दिल्ली वासियों को मिल सकती है। संक्रमण फैलाव को लेकर गणितीय मॉडल के आधार पर लगाए जाने वाले कयास गलत साबित हो रहे हैं। इस माह के अंत तक दिल्ली में अब साढ़े पांच लाख कोरोना संक्रमित मरीज नहीं हो सकते हैं। बुधवार को दिल्ली सरकार की एक कमेटी के अध्यक्ष डॉ. महेश वर्मा ने कहा कि अभी की स्थिति को देख नहीं लगता है कि जुलाई अंत तक दिल्ली में साढ़े पांच लाख मामले होंगे।

दरअसल दिल्ली सरकार ने जब राजधानी के ही मरीजों का उपचार अस्पतालों में करने की रणनीति बनाई तो उन्होंने पांच सदस्यीय एक कमेटी का गठन करते हुए पहले बिस्तर व अस्पतालों की सुविधाओं की समीक्षा की थी। इसी कमेटी के अध्यक्ष डॉ. महेश वर्मा थे जिन्होंने दिल्ली सरकार को सिफारिश की थी कि अगर बाहरी राज्यों के मरीजों को दिल्ली के अस्पतालों में दाखिला मिला तो तीन दिन में ही सभी अस्पताल भर जाएंगे।
इसी बीच उन्होंने जुलाई माह में लाखों मरीज होने का अनुमान भी लगाया था। हालांकि फिलहाल एक जुलाई तक दिल्ली में कुल मरीजों की संख्या 90 हजार के करीब है। इस कमेटी की सिफारिशों का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा भी की थी लेकिन उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसके चलते मामला राजनीतिक तूल भी पकड़ा था।
एक लाख का था अनुमान, 90 हजार भी नहीं पहुंचे
डॉ. महेश वर्मा का अब कहना है कि पिछले महीने हमारा अनुमान था कि जून अंत तक करीब एक लाख मामले होंगे। ऐसा नहीं होने पर उनका कहना है कि दिल्ली में एक नया रूझान विकसित हो रहा है। उन्होंने यहां तक कहा है कि मामलों में गिरावट के तीन-चार ही दिन हुए हैं। कुछ दिनों तक हमें संख्या पर नजर रखनी होगी। इसके बाद ही अनुमान लगाया जा सकेगा।

धूप-गर्मी के बाद अब मानसून पर अटकलें
डॉ. वर्मा का कहना है कि मानसून का वक्त है। डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोग हर साल देखने को मिलते हैं। इन रोगों के लक्षण भी कोरोना से काफी मिलते जुलते हैं। ऐसे में सतर्कता बेहद जरूरी है। कोरोना वायरस को लेकर इससे पहले कहा गया था कि धूप में बैठने से यह वायरस नहीं होता है। फिर कहा गया कि ज्यादा गर्मी में यह वायरस खत्म हो जाता है। अभी तक यह दोनों ही दावे गलत और झूठे साबित हुए हैं। मानसून में फैलाव को लेकर भी अब तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन भी नहीं आया है। हालांकि एहतियात फिर भी जरूरी है।

 

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